Tuesday, May 12, 2020

लेख:- अभिषेक पाण्डेय (लल्ला गोरखपुरी)
--------------------------------------------------------
🌳🌹🌳🌹🌳🌹🌳🌹🌳🌹🌳🌹🌳🌹
हे भारत के राम जगो!🙏

आज वैश्विक स्तर पर जिसप्रकार भारत इस महामारी के दौर में पूरी ऊर्जा, लगन और कौशल के साथ अपनी स्थिति को मजबूत बनाये हुए है वह वास्तव में सराहनीय है। प्रतिदिन आ रहे नए कोरोना मामलों के बावजूद आज भारत वैश्विक स्तर पर कोरोना मरीजों की रिकवरी और अन्य नए मामलों के रोकथाम हेतु अच्छा काम कर रहा है। कोरोना जांच के मामले को देखा जाये तो आज देश में 15 लाख से ऊपर जांच हुए हैं जो अनवरत जारी है।
सुरक्षा मानकों एवमं सुविधाओं के परिपेक्ष्य में बात करें तो
*इमरजेंसी में चीन से मंगाए गए पीपीई किट्स में मिली खामियों को ध्यान में रखते हुए भारत के द्वारा स्वदेशी किट निर्माण का कार्य प्रारम्भ किया गया। आज भारत की कुल 111 कम्पनियों ने N95 मास्क और 2 लाख पीपीई किट्स का निर्माण प्रतिदिन कर रही हैं। इसके माध्यम से पिछले 2 महीनों में 7000 करोड़ के व्यवसाय को खड़ा कर भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और सप्लायर देश बनकर उभरा है। जिस किट की कीमत सब्सिडी छोड़कर आम नागरिकों के लिए भारत में प्रति किट 3000₹ थी आज भारत उसी किट को मात्र 600₹ में तैयार कर रहा है। वहीं देश की बड़ी प्रद्योगिकी संस्थाएं अन्य आवश्यक नव तकनीकी सामग्रियों जैसे जीवन रक्षक प्रणाली (वेंटिलेटर), मास्क, डीआरडीओ द्वारा निर्मित UV ब्लास्टर नामक डिसइन्फेक्शन टावर आदि का बड़े पैमाने पर निर्माण में महती भूमिका निभा रही हैं।
* IIT कानपुर  व भारत डायनामिक्स के साझे प्रयासों से सस्ते दामों पर वेंटिलेटर तैयार किया जा रहा है साथ ही साथ IIT दिल्ली ने लगभग 50 बार, धुलकर पुनः प्रयोग में  लायी जाने वाली  N-safe एंटीमाइक्रोबियल मास्क का निर्माण किया है व अन्य कई दवा की कम्पनियां  दवा का निर्माण कर रही हैं।
 जहां भारत में पीपीई किट्स, दवा आदि का प्रोडक्शन कभी शून्य था आज वह वैश्विक स्तर पर एक मानक स्थापित कर रहा है तथा भारत अन्य देशों के लिए आपूर्ति कर्ता के रूप में उभर कर सामने आया है।। अन्य कई छोटे देशों जैसे मालदीव, क्रोएशिया, दक्षिण अफ्रीकी कॉन्टिनेंट के कई देश जो आज कोरोना व डेंगू से बुरी तरह प्रभावित हैं उनको भारत द्वारा रसद सामग्री, दवाएं, किट्स, मास्क,  और डॉक्टरों की आपूर्ति की जा रही है।
किसी भी देश के उत्थान की भूमिका वहां के व्यक्तियों और उनकी प्रशासन व प्रकृति के बीच आपसी समन्वयन से सुदृढ़ होती है। संविधान का मूल तत्व व्यक्ति हित और व्यक्तित्व निर्माण पर निर्धारित है। आज सरकारी तंत्र को इस बात को लेकर पूर्णतया सजग होना होगा असल में संविधान की रक्षा तभी हो पाएगी जब हम व्यक्ति और व्यक्तित्व विकास को बेहतर कर पाएंगे। हालांकि यह जिम्मेदारी सिर्फ तंत्र तक नही बल्कि तंत्र के निर्माण कर्ताओं की भी है जो संविधान के मौलिक अधिकारों की तो बात करते हैं पर मौलिक कर्तव्यों के प्रति अचेतावस्था में हैं। इस महामारी को जहां भारत स्वविकास के अवसर के रूप में देख रहा है उसको अमली जामा पहनाने के लिए नागरिकों का दायित्व सर्वाधिक है। एक रिपोर्ट के अनुसार लगभग 90 लाख किसानों ने खेती करना छोड़ कर दूसरे राज्यों में मजदूरी करने के लिए मजबूर हुए उदाहरण के तौर पर देखें तो महाराष्ट्र में ही बिहार से लगभग 46 लाख और उत्तर प्रदेश से लगभग 6 लाख किसान और अन्य कमजोर वर्ग के लोग कार्य कर रहे हैं और ऐसे ही कई राज्यों के मजदूर/कृषक वर्ग जिसमें कि अधिकांशत: इस महामारी के कारण आज भारत के अन्य राज्यों से पलायन कर स्वगृह वापस आये हैं या आ रहे हैं व अपनी आजीविका के लिए पुनः कृषि कार्यों में जुट गए हैं जिससे कृषि क्षेत्र में किसानों की 5.8% की वृद्धि हुई है। आज भारत सरकार को ऐसे विस्थापन के लिए मजबूर हुए किसानों के लिए अपनी किसान नीतियों में सुधार के साथ साथ, कृषि सुधार कार्यक्रमों को ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों माध्यमों से सुदृढ़ करना होगा जिससे यह विस्थापन दुबारा ना हो।। कृषि व्यवसायिक केंद्रों को पारदर्शी बनाने के साथ ही सरकार द्वारा लांच किए गए "कृषि सभा एप" का बेहतर क्रियान्वयन कराना होगा जिससे किसान नई फसल योजनाओं के बारे में और कृषि कार्यों के विविध आयामों से अवगत हो सकें।। किसान बीमा योजना, किसान निधि योजनाओं के प्रति सुदृढ़ और सजग रवैया अपनाना होगा। मल्टीलेयर फार्मिंग को और बढ़ावा देना होगा। आज प्रधानमंत्री जी ने 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के परिप्रेक्ष्य में जिस चार L (लैंड , लेबर, लिक्वीडिटी, और लॉज) के संदर्भ में बात करते हुए कुटीर उद्योगों, लघु उद्योगों, MsME आदि के लिए विभिन्न प्रावधानों के अधीन 20 लाख करोड़ के पैकेज की बात कही है वह स्वागतयोग्य है। कभी कभी बाहर की चकाचौंध देखने में हमारी आंखे इतनी खो जाती हैं कि हम अपने आसपास की आवश्यक चीजों पर ध्यान नही दे पाते और ये कमजोरी दीमक की भांति हमें खोखली करने लगती है। इस भयावह स्थिति ने हमें पुनः हमारे घर को वापस सुदृढ़ और सुव्यवस्थित करने का मौका दिया है और इसको ध्यान में रखते हुए लोकल स्तर पर आजीविका के साधनों को स्थापित करने की प्रतिबद्धता के साथ चल रही व्यवस्थाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार का यह कदम प्रसंशनीय है।।
हम भारतीय लोग ध्वंस से सृजन की विधि की कहानियां सुनते पले बढ़े हैं और जब भी देशकाल को अस्तित्व की रक्षा हेतु हमारी आवश्यकताएं पड़ीं हमने अनेक सस्ते किन्तु बेहतरीन माध्यमों से उन परिस्थितियों से निबटा है।।
हर घड़ी हम हनुमान से प्रेरणा तो लेते हैं पर जामवंत की कमी के कारण चूक जाते हैं। किन्तु यह समय हमें स्वावलम्बी बनाने के साथ साथ सतर्क और तेज बनाने का हुनर भी सिखा रहा है औऱ हमारे ध्येय वाक्य "उठो! जागो!  और लक्ष्य प्राप्ति तक बढ़ते रहो" को साधने के लिए प्रेरित कर रहा है।। अतः स्वागत करिये।।

Wednesday, April 1, 2020

बँधुआ शिक्षा
और बँधुआ शिक्षानीति
एक चक्की के आसपास
गुलामों जैसे मंडराते विचार
काश! अपने ज्ञान को और विस्तार देते
तो शायद आज
ये कत्तई नहीं होता।
तुम नहीं पोषते
पीढ़ियों के कुंठित विचार
रूढ़ियों के दीमक
जो अभी भी नही होने दे रहे
तुमको हरा भरा।

तुम इस्तेमाल करते
सद्विचारों का ब्लीचिंग पाउडर
और साफ करते
कहीं सिमटे हुए जल की भांति
दुर्गंध फैलाती मानसिकता को,
बनाते एक रास्ता
जो पहुंचाती तुम्हे दरिया से
समंदर की अथाह गहराईयों तक
जहाँ रहस्य और प्राप्ति
तुम्हें मग्न कर देते
अपनी पजल सुलझाने में।

तुम समझ पाते
आसपास हो रही घटनाओं के मर्म को,
तुम देख पाते पतझड़ जैसे
सूखे पत्तों सा गिरता जीवन,
तुम महसूस करते मानवता,
लुटने से बचा पाते
मदद का दामन।

तुम बना पाते
मानवीय नैतिकता के पुल,
एक उद्यमी की भांति
सहज जोड़ पाते ख़ुद को
आधुनिक विज्ञान से
जहां खिलते हैं नये नये
शोध के फूल,
तुम समझ पाते आइंस्टीन की थ्योरी
गुरुत्वाकर्षण के नियम
क्रिया प्रतिक्रिया की रूपरेखा को
रामानुजन के गणितीय सिद्धांत
जैविक विकास के क्रम को
आर्यभट्ट के खगोल को
बीरबल साहनी के वानस्पतिक शोध को
अबू मूसा के रसायन,
दर्शन और ज्योतिष के प्रति समर्पण को
मुहम्मद इब्न मूसा के अलजेब्रा
और अल्गोरिथम के प्रयोग को
कलाम के अद्वितीय स्वरूप को।
तुम समझ पाते जीवन की प्रयोगशाला को
तुम कर पाते अनेकानेक प्रयोग,
जीवन के निमित्त।

पीछे की ओर लोच लेती गर्दन
जब ले जाती दिखाने तुम्हें
ऊपर का नीला आकाश,
दरम्यान उसके तुम देख पाते
ऊपर चढ़ती हुईं पर्वत मालाओं को
आसमान छूने को लालायित पेड़ों को
मुस्कुराते फूलों को
जमीं से उड़ान भरते
परिंदों के जत्थे को,
पनघट की प्यास को
लचकती कमर के ऊपर
ठुमकते घड़े को,
सतरंगी संसार की सुंदरता को
और फिर समझ पाते
इसके होने के कारण को
उत्थान की उत्कंठा को
बचाने की जिजीविषा को।

काश ! अपने ज्ञान को और विस्तार देते
काश!...

(लल्ला गोरखपुरी)

Wednesday, March 25, 2020

हर सतरंगी सुबह
लेकर आती है सौगात
बंदर मामा चिहुँक गए हैं
सुनकर अदरक वाली बात

गौरैया आंगन में आई
दाना चुगकर चोंच में लायी
अम्मा कीर्तन गाये जात
चींटी की निकली बारात

छोड़ मोबाईल खेलो कूदो
पाठ पढ़ो और माने ढूंढो
मुश्किल सारी खाये मात
बाबा भी समझाये जात

पढ़ लिखकर इंसान बनेंगे
सज्जन और महान बनेंगे
मिल जाएगी सब ख़ैरात
जीवन की ये मानो बात

(लल्ला गोरखपुरी)
एक बाल कविता ।।।
लेख – लल्ला गोरखपुरी

(COVID-19  और प्रकृति के बीच दुनिया)
🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳
"उत्साहो बलवानार्य नासत्युत्साहत्परं बलम्"
🙌.                                                    🙌
विजय उत्साहियों के गोद में खेलती है, उत्साह बल देता है,  बड़े से बड़ा खिलाड़ी उत्साह के अभाव में छोटे से छोटा खेल हार जाता है, वह उत्साह स्वजनित हो या पर जनित, थाली से हो या ताली से उसकी आवश्यकता को आधुनिक विज्ञान की कसौटी या मात्र लाभ हानि की बाजारवादी सोच से नही तय किया जा सकता। प्रत्येक काल का अपना अनुसंधान रहा है और प्रत्येक काल में मानवता के लिए विकट या मानवता के निकट अनेक प्रयोग हुए और सबकी अपनी सार्थकता रही है। हजारों वर्षों से प्राकृतिक संरक्षण  और व्यक्तित्व विकास के साथ मानवता के हित के लिए हुए प्रयोगों ने आम जनजीवन को खुशहाल बनाने के लिए कई प्रकार के प्रयोग किये चाहे वह वृक्षों, पशुओं, पर्वतों, नदियों आदि के प्रति आस्था का दृष्टिकोण हो या संगीतों, वाद्य यंत्रों आदि के प्रकार या लय की सुखानुभूति और प्रसन्नता के साथ एक सूत्र में जोड़ने का साधन रहे हों। आज के विज्ञान की अपनी प्रासंगिकता है, आवश्यक है मूल को सहेजते हुए आज की ऊंचाइयों तक पहुंचने की प्रत्येक रस में सामंजस्य स्थापित करने की ना कि तुलनात्मक आरोपों के साथ त्यागने की। ध्येय यदि रक्षक रहा है तो उसे बचाना हमारा कर्तव्य है ना कि आधुनिकता के आड़ में उसका हनन करना।
    आज विश्व के अधिकांश देश कोरोना वायरस COVID-19 (SARS corona virus family) से जीवन और मृत्यु के बीच अपने जीवन की रक्षा हेतु जूझ रहे हैं जिसे WHO ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। इस RNA वायरस ने छुआछूत के सही मायनों को इसप्रकार रेखांकित किया है कि त्राहिमाम् के आह्वान के साथ सम्पूर्ण मानवता आज एक सूत्र में बंधती नजर आ रही है। दुनियाभर से आई रिपोर्ट के अनुसार आज लगभग 4लाख 28 हजार लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं तथा 19000 लोग काल के गाल में समा चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार DALY(Disability adjusted life year) में जहाँ आज दुनिया का औसतन दूसरा सबसे अधिक ओल्ड एज पॉपुलेशन वाला देश इटली जिसकी कुल जनसंख्या 6 करोड़ है जिनकी औसत आयु सीमा 81 वर्ष है आज वहां सबसे अधिक लगभग 50 हजार से भी ज्यादा लोग संक्रमण के गिरफ्त में हैं  और 5 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। हालांकि इसमें मरने वाले लोग अधिकांशतः फेफड़े, किडनी, कैंसर आदि के मरीज रहे हैं या जिनकी उम्र 55-60 से अधिक रही है।
  चीन के वुहान शहर से उत्पन्न यह वायरस जहां दुनियाभर में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक व्यवस्थाओं व दृष्टिकोण को प्रभावित कर रहा है वहीं चीन  अब इस संक्रमण के फैलाव को नियंत्रित करने में धीरे धीरे सफल भी हुआ है। चीन में लगभग 82000 से अधिक लोग इसकी गिरफ्त में हैं और लगभग 4000 लोग मारे जा चुके हैं। उम्र के हर पड़ाव को प्रभावित करने वाला यह वायरस जहां 60-65 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए सर्वाधिक जानलेवा है वहीं भौगोलिक दृष्टि से चीन के नजदीक 12 करोड़ आबादी वाला जापान जिसमें औसतन दुनिया की सबसे अधिक ओल्ड एज पॉपुलेशन (कुल जनसंख्या का 1/4 से अधिक) निवास करती है वह इतनी भयावह स्थिति से बचा हुआ है क्यों? इसका केवल एक ही कारण कि जापान में जनवरी से ही जापान-चीन हवाई यात्राओं पर रोक या देश के कुछ हिस्सों में समय रहते लॉकडाउन करना मात्र नहीं है अपितु वर्षों पूर्व में आयी कई बीमारियों (H1N1 virus, SARS virus आदि) से सतर्कता के लिए उठाए गए कदम जैसे Face mass culture of Japan, अधिकांशतः जैपनीज़ बाओ में ग्रीट  करना, भोजन से पहले हाथ, पैर धुलना आदि है  जो आज उनके दैनिक जीवन का हिस्सा हैं जिसके कारण वह बहुत कम लोगों से फिजिकल टच में आते हैं। हालांकि यह पूर्ण निदान नहीं है। दिसम्बर में ही चीन के एक ophthalmologist डॉ.ली वेन यांग ने इस वायरस के प्रति जब दुनिया को सचेत करना चाहा तो चीन ने आधिकारिक तौर पर रोक लगा दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि दुनिया सतर्क होती कि इससे पहले यह वायरस उग्रतम रूप धारण कर लिया वहीं चीन के द्वारा की गई दूसरी और बड़ी गलती जिससे हमें सीखना होगा कि चीन ने अपने बड़े औद्योगिक शहर वुहान में लॉकडाउन करने से कुछ दिन पहले ही इसकी घोषणा कर दी जिसका परिणाम यह हुआ कि लगभग 50 लाख लोग शहर छोड़ कर अपने घरों को वापस चले गए और साथ ही साथ वायरस भी ले गए और इसप्रकार कई यूरोपीय और एशियन देशों में यह संक्रमण आसानी से फैल गया। भारत की औसतन ओल्ड एज पॉपुलेशन 6% ही है अर्थात विश्व का सबसे बड़ा युवा देश जहाँ चौथा सप्ताह आते आते  लगभग 500 मामले सामने आ चुके हैं और लगभग 40-50 लोग पूर्णतः ठीक भी हो चुके हैं ऐसे में भारत के सामने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही एक बड़ी जनसंख्या को सुरक्षित रखना और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना आज भी एक कठिन चुनौती है यदि इस वायरस के रोकथाम के प्रति हम स्वतः में सचेत नही हुए तो हमें भी अन्य देशों की भांति बहुत क्षति उठानी पड़ सकती है। हमें Social distancing और Lockdown के नियमों का अनिवार्यतः पालन करना होगा, दिनचर्या में सुधार के साथ सरकारी दिशानिर्देशों के अनुरूप चलते हुए देशहित में सहयोगी बनना होगा। प्राकृतिक संरक्षण और संवर्धन में मानवीय भूमिका ही मानवता को सुरक्षित रख सकती है। यह natural reclamation का दौर है जिससे हमें प्रकृति द्वारा प्रदान की गई प्रत्येक वस्तुओं से सामंजस्य स्थापित करने की ना कि शासन व हनन करने की सीख भी लेनी होगी।।
जो सौम्य है, शांत है
सहज है, नितांत है
धैर्य का वृतांत है
वही शिव है

जो सागर का हलचल है
रागों का बादल है
प्रेमी सा पागल है
वही शिव है

जो गुढ्य है, गंभीर है
प्रशांत सा सुधीर है
नेह का नीर है
वही शिव है

जो शून्य में साकार है
अनंत का आकार है
निस्पृह निराकार है
वही शिव है

जो मृदंग का साज है
रागों का राज है
मूक है, आवाज है
वही शिव है

जो फक्कड़ है, दिगम्बर है
अघोरी है, पयम्बर है
शक्ति का स्वयंबर है
वही शिव है

जो उद्भव है, विलीन है
आदि है, अर्वाचीन है
भोला है कुलीन है
वही शिव है

जो आकृति है, दर्पण है
अर्पण है, तर्पण है
विरक्त है, समर्पण है
वही शिव है

(लल्ला गोरखपुरी)