लेख – लल्ला गोरखपुरी
(COVID-19 और प्रकृति के बीच दुनिया)
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"उत्साहो बलवानार्य नासत्युत्साहत्परं बलम्"
🙌. 🙌
विजय उत्साहियों के गोद में खेलती है, उत्साह बल देता है, बड़े से बड़ा खिलाड़ी उत्साह के अभाव में छोटे से छोटा खेल हार जाता है, वह उत्साह स्वजनित हो या पर जनित, थाली से हो या ताली से उसकी आवश्यकता को आधुनिक विज्ञान की कसौटी या मात्र लाभ हानि की बाजारवादी सोच से नही तय किया जा सकता। प्रत्येक काल का अपना अनुसंधान रहा है और प्रत्येक काल में मानवता के लिए विकट या मानवता के निकट अनेक प्रयोग हुए और सबकी अपनी सार्थकता रही है। हजारों वर्षों से प्राकृतिक संरक्षण और व्यक्तित्व विकास के साथ मानवता के हित के लिए हुए प्रयोगों ने आम जनजीवन को खुशहाल बनाने के लिए कई प्रकार के प्रयोग किये चाहे वह वृक्षों, पशुओं, पर्वतों, नदियों आदि के प्रति आस्था का दृष्टिकोण हो या संगीतों, वाद्य यंत्रों आदि के प्रकार या लय की सुखानुभूति और प्रसन्नता के साथ एक सूत्र में जोड़ने का साधन रहे हों। आज के विज्ञान की अपनी प्रासंगिकता है, आवश्यक है मूल को सहेजते हुए आज की ऊंचाइयों तक पहुंचने की प्रत्येक रस में सामंजस्य स्थापित करने की ना कि तुलनात्मक आरोपों के साथ त्यागने की। ध्येय यदि रक्षक रहा है तो उसे बचाना हमारा कर्तव्य है ना कि आधुनिकता के आड़ में उसका हनन करना।
आज विश्व के अधिकांश देश कोरोना वायरस COVID-19 (SARS corona virus family) से जीवन और मृत्यु के बीच अपने जीवन की रक्षा हेतु जूझ रहे हैं जिसे WHO ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। इस RNA वायरस ने छुआछूत के सही मायनों को इसप्रकार रेखांकित किया है कि त्राहिमाम् के आह्वान के साथ सम्पूर्ण मानवता आज एक सूत्र में बंधती नजर आ रही है। दुनियाभर से आई रिपोर्ट के अनुसार आज लगभग 4लाख 28 हजार लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं तथा 19000 लोग काल के गाल में समा चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार DALY(Disability adjusted life year) में जहाँ आज दुनिया का औसतन दूसरा सबसे अधिक ओल्ड एज पॉपुलेशन वाला देश इटली जिसकी कुल जनसंख्या 6 करोड़ है जिनकी औसत आयु सीमा 81 वर्ष है आज वहां सबसे अधिक लगभग 50 हजार से भी ज्यादा लोग संक्रमण के गिरफ्त में हैं और 5 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। हालांकि इसमें मरने वाले लोग अधिकांशतः फेफड़े, किडनी, कैंसर आदि के मरीज रहे हैं या जिनकी उम्र 55-60 से अधिक रही है।
चीन के वुहान शहर से उत्पन्न यह वायरस जहां दुनियाभर में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक व्यवस्थाओं व दृष्टिकोण को प्रभावित कर रहा है वहीं चीन अब इस संक्रमण के फैलाव को नियंत्रित करने में धीरे धीरे सफल भी हुआ है। चीन में लगभग 82000 से अधिक लोग इसकी गिरफ्त में हैं और लगभग 4000 लोग मारे जा चुके हैं। उम्र के हर पड़ाव को प्रभावित करने वाला यह वायरस जहां 60-65 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए सर्वाधिक जानलेवा है वहीं भौगोलिक दृष्टि से चीन के नजदीक 12 करोड़ आबादी वाला जापान जिसमें औसतन दुनिया की सबसे अधिक ओल्ड एज पॉपुलेशन (कुल जनसंख्या का 1/4 से अधिक) निवास करती है वह इतनी भयावह स्थिति से बचा हुआ है क्यों? इसका केवल एक ही कारण कि जापान में जनवरी से ही जापान-चीन हवाई यात्राओं पर रोक या देश के कुछ हिस्सों में समय रहते लॉकडाउन करना मात्र नहीं है अपितु वर्षों पूर्व में आयी कई बीमारियों (H1N1 virus, SARS virus आदि) से सतर्कता के लिए उठाए गए कदम जैसे Face mass culture of Japan, अधिकांशतः जैपनीज़ बाओ में ग्रीट करना, भोजन से पहले हाथ, पैर धुलना आदि है जो आज उनके दैनिक जीवन का हिस्सा हैं जिसके कारण वह बहुत कम लोगों से फिजिकल टच में आते हैं। हालांकि यह पूर्ण निदान नहीं है। दिसम्बर में ही चीन के एक ophthalmologist डॉ.ली वेन यांग ने इस वायरस के प्रति जब दुनिया को सचेत करना चाहा तो चीन ने आधिकारिक तौर पर रोक लगा दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि दुनिया सतर्क होती कि इससे पहले यह वायरस उग्रतम रूप धारण कर लिया वहीं चीन के द्वारा की गई दूसरी और बड़ी गलती जिससे हमें सीखना होगा कि चीन ने अपने बड़े औद्योगिक शहर वुहान में लॉकडाउन करने से कुछ दिन पहले ही इसकी घोषणा कर दी जिसका परिणाम यह हुआ कि लगभग 50 लाख लोग शहर छोड़ कर अपने घरों को वापस चले गए और साथ ही साथ वायरस भी ले गए और इसप्रकार कई यूरोपीय और एशियन देशों में यह संक्रमण आसानी से फैल गया। भारत की औसतन ओल्ड एज पॉपुलेशन 6% ही है अर्थात विश्व का सबसे बड़ा युवा देश जहाँ चौथा सप्ताह आते आते लगभग 500 मामले सामने आ चुके हैं और लगभग 40-50 लोग पूर्णतः ठीक भी हो चुके हैं ऐसे में भारत के सामने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही एक बड़ी जनसंख्या को सुरक्षित रखना और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना आज भी एक कठिन चुनौती है यदि इस वायरस के रोकथाम के प्रति हम स्वतः में सचेत नही हुए तो हमें भी अन्य देशों की भांति बहुत क्षति उठानी पड़ सकती है। हमें Social distancing और Lockdown के नियमों का अनिवार्यतः पालन करना होगा, दिनचर्या में सुधार के साथ सरकारी दिशानिर्देशों के अनुरूप चलते हुए देशहित में सहयोगी बनना होगा। प्राकृतिक संरक्षण और संवर्धन में मानवीय भूमिका ही मानवता को सुरक्षित रख सकती है। यह natural reclamation का दौर है जिससे हमें प्रकृति द्वारा प्रदान की गई प्रत्येक वस्तुओं से सामंजस्य स्थापित करने की ना कि शासन व हनन करने की सीख भी लेनी होगी।।
(COVID-19 और प्रकृति के बीच दुनिया)
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"उत्साहो बलवानार्य नासत्युत्साहत्परं बलम्"
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विजय उत्साहियों के गोद में खेलती है, उत्साह बल देता है, बड़े से बड़ा खिलाड़ी उत्साह के अभाव में छोटे से छोटा खेल हार जाता है, वह उत्साह स्वजनित हो या पर जनित, थाली से हो या ताली से उसकी आवश्यकता को आधुनिक विज्ञान की कसौटी या मात्र लाभ हानि की बाजारवादी सोच से नही तय किया जा सकता। प्रत्येक काल का अपना अनुसंधान रहा है और प्रत्येक काल में मानवता के लिए विकट या मानवता के निकट अनेक प्रयोग हुए और सबकी अपनी सार्थकता रही है। हजारों वर्षों से प्राकृतिक संरक्षण और व्यक्तित्व विकास के साथ मानवता के हित के लिए हुए प्रयोगों ने आम जनजीवन को खुशहाल बनाने के लिए कई प्रकार के प्रयोग किये चाहे वह वृक्षों, पशुओं, पर्वतों, नदियों आदि के प्रति आस्था का दृष्टिकोण हो या संगीतों, वाद्य यंत्रों आदि के प्रकार या लय की सुखानुभूति और प्रसन्नता के साथ एक सूत्र में जोड़ने का साधन रहे हों। आज के विज्ञान की अपनी प्रासंगिकता है, आवश्यक है मूल को सहेजते हुए आज की ऊंचाइयों तक पहुंचने की प्रत्येक रस में सामंजस्य स्थापित करने की ना कि तुलनात्मक आरोपों के साथ त्यागने की। ध्येय यदि रक्षक रहा है तो उसे बचाना हमारा कर्तव्य है ना कि आधुनिकता के आड़ में उसका हनन करना।
आज विश्व के अधिकांश देश कोरोना वायरस COVID-19 (SARS corona virus family) से जीवन और मृत्यु के बीच अपने जीवन की रक्षा हेतु जूझ रहे हैं जिसे WHO ने वैश्विक महामारी घोषित कर दिया है। इस RNA वायरस ने छुआछूत के सही मायनों को इसप्रकार रेखांकित किया है कि त्राहिमाम् के आह्वान के साथ सम्पूर्ण मानवता आज एक सूत्र में बंधती नजर आ रही है। दुनियाभर से आई रिपोर्ट के अनुसार आज लगभग 4लाख 28 हजार लोग इस महामारी से संक्रमित हो चुके हैं तथा 19000 लोग काल के गाल में समा चुके हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार DALY(Disability adjusted life year) में जहाँ आज दुनिया का औसतन दूसरा सबसे अधिक ओल्ड एज पॉपुलेशन वाला देश इटली जिसकी कुल जनसंख्या 6 करोड़ है जिनकी औसत आयु सीमा 81 वर्ष है आज वहां सबसे अधिक लगभग 50 हजार से भी ज्यादा लोग संक्रमण के गिरफ्त में हैं और 5 हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। हालांकि इसमें मरने वाले लोग अधिकांशतः फेफड़े, किडनी, कैंसर आदि के मरीज रहे हैं या जिनकी उम्र 55-60 से अधिक रही है।
चीन के वुहान शहर से उत्पन्न यह वायरस जहां दुनियाभर में सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक व वैज्ञानिक व्यवस्थाओं व दृष्टिकोण को प्रभावित कर रहा है वहीं चीन अब इस संक्रमण के फैलाव को नियंत्रित करने में धीरे धीरे सफल भी हुआ है। चीन में लगभग 82000 से अधिक लोग इसकी गिरफ्त में हैं और लगभग 4000 लोग मारे जा चुके हैं। उम्र के हर पड़ाव को प्रभावित करने वाला यह वायरस जहां 60-65 वर्ष या इससे अधिक उम्र के लोगों के लिए सर्वाधिक जानलेवा है वहीं भौगोलिक दृष्टि से चीन के नजदीक 12 करोड़ आबादी वाला जापान जिसमें औसतन दुनिया की सबसे अधिक ओल्ड एज पॉपुलेशन (कुल जनसंख्या का 1/4 से अधिक) निवास करती है वह इतनी भयावह स्थिति से बचा हुआ है क्यों? इसका केवल एक ही कारण कि जापान में जनवरी से ही जापान-चीन हवाई यात्राओं पर रोक या देश के कुछ हिस्सों में समय रहते लॉकडाउन करना मात्र नहीं है अपितु वर्षों पूर्व में आयी कई बीमारियों (H1N1 virus, SARS virus आदि) से सतर्कता के लिए उठाए गए कदम जैसे Face mass culture of Japan, अधिकांशतः जैपनीज़ बाओ में ग्रीट करना, भोजन से पहले हाथ, पैर धुलना आदि है जो आज उनके दैनिक जीवन का हिस्सा हैं जिसके कारण वह बहुत कम लोगों से फिजिकल टच में आते हैं। हालांकि यह पूर्ण निदान नहीं है। दिसम्बर में ही चीन के एक ophthalmologist डॉ.ली वेन यांग ने इस वायरस के प्रति जब दुनिया को सचेत करना चाहा तो चीन ने आधिकारिक तौर पर रोक लगा दी। जिसका परिणाम यह हुआ कि दुनिया सतर्क होती कि इससे पहले यह वायरस उग्रतम रूप धारण कर लिया वहीं चीन के द्वारा की गई दूसरी और बड़ी गलती जिससे हमें सीखना होगा कि चीन ने अपने बड़े औद्योगिक शहर वुहान में लॉकडाउन करने से कुछ दिन पहले ही इसकी घोषणा कर दी जिसका परिणाम यह हुआ कि लगभग 50 लाख लोग शहर छोड़ कर अपने घरों को वापस चले गए और साथ ही साथ वायरस भी ले गए और इसप्रकार कई यूरोपीय और एशियन देशों में यह संक्रमण आसानी से फैल गया। भारत की औसतन ओल्ड एज पॉपुलेशन 6% ही है अर्थात विश्व का सबसे बड़ा युवा देश जहाँ चौथा सप्ताह आते आते लगभग 500 मामले सामने आ चुके हैं और लगभग 40-50 लोग पूर्णतः ठीक भी हो चुके हैं ऐसे में भारत के सामने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रही एक बड़ी जनसंख्या को सुरक्षित रखना और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करना आज भी एक कठिन चुनौती है यदि इस वायरस के रोकथाम के प्रति हम स्वतः में सचेत नही हुए तो हमें भी अन्य देशों की भांति बहुत क्षति उठानी पड़ सकती है। हमें Social distancing और Lockdown के नियमों का अनिवार्यतः पालन करना होगा, दिनचर्या में सुधार के साथ सरकारी दिशानिर्देशों के अनुरूप चलते हुए देशहित में सहयोगी बनना होगा। प्राकृतिक संरक्षण और संवर्धन में मानवीय भूमिका ही मानवता को सुरक्षित रख सकती है। यह natural reclamation का दौर है जिससे हमें प्रकृति द्वारा प्रदान की गई प्रत्येक वस्तुओं से सामंजस्य स्थापित करने की ना कि शासन व हनन करने की सीख भी लेनी होगी।।
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