कभी कभी अनुभव का दायरा इंसान को कर्तव्यों से बहुत दूर लेकर चला जाता है, लेकिन इससे पहले कि हम कहीं भटक ना जाएं,
हमें जरूरत होती है अपनी निष्ठा पूर्वक बनाई गई चीजों को सहेजने की, उसके साथ सदा ईमानदार रहने की।
कर्तव्यों से दूर एक बारीक लकीर है ,यह महज एक लकीर नही चेतना का मंच है जहां नाचती है मुग्धता, देखता है आत्मसम्मान, संगीत गाती वासना और निर्णय कर्ता कर्म।
हमें जरूरत होती उस लकीर के दरम्यान अपने चेतना के साथ सत्कर्मों की, वासना हर बार पर्दा डाल देती और नए नाटक का मंचन करती आत्मसम्मान के सामने। इसी बीच शुरू होता अपने नजरों में सदा उठा हुआ मष्तिष्क का विचरण जहां हर विचार एक उपद्रव होता है जो मंच को बनाने के लिए आता या तो गंवाने के लिए और कर्म नियति की तूलिका से निर्णय के लिए तैयार रहता है।
लल्ला गोरखपुरी
#एक_विचार 🤗🌹🤗🌹
हमें जरूरत होती है अपनी निष्ठा पूर्वक बनाई गई चीजों को सहेजने की, उसके साथ सदा ईमानदार रहने की।
कर्तव्यों से दूर एक बारीक लकीर है ,यह महज एक लकीर नही चेतना का मंच है जहां नाचती है मुग्धता, देखता है आत्मसम्मान, संगीत गाती वासना और निर्णय कर्ता कर्म।
हमें जरूरत होती उस लकीर के दरम्यान अपने चेतना के साथ सत्कर्मों की, वासना हर बार पर्दा डाल देती और नए नाटक का मंचन करती आत्मसम्मान के सामने। इसी बीच शुरू होता अपने नजरों में सदा उठा हुआ मष्तिष्क का विचरण जहां हर विचार एक उपद्रव होता है जो मंच को बनाने के लिए आता या तो गंवाने के लिए और कर्म नियति की तूलिका से निर्णय के लिए तैयार रहता है।
लल्ला गोरखपुरी
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