अंधियारे की चादर ओढ़े सोया जो
सूर्य दीप्ति ले फिर से जगने वाला है
घबराओ मत पौध मेरी आशाओं की
वसुधा का यह रूप संवरने वाला है
है मशाल जो जली यहां की झुग्गी से
घोर तिमिर का बंधन कटने वाला है
सुनो!किरायेदारों वापस घर आओ
घर अपना ही विश्व बदलने वाला है
और पिलाओ विष का गागर जल्दी से
नीलकंठ का रंग उतरने वाला है
अस्त व्यस्त ही सही रहूँगा संग तेरे
सदा तेरा किरदार चहकने वाला है
लल्ला गोरखपुरी....
सूर्य दीप्ति ले फिर से जगने वाला है
घबराओ मत पौध मेरी आशाओं की
वसुधा का यह रूप संवरने वाला है
है मशाल जो जली यहां की झुग्गी से
घोर तिमिर का बंधन कटने वाला है
सुनो!किरायेदारों वापस घर आओ
घर अपना ही विश्व बदलने वाला है
और पिलाओ विष का गागर जल्दी से
नीलकंठ का रंग उतरने वाला है
अस्त व्यस्त ही सही रहूँगा संग तेरे
सदा तेरा किरदार चहकने वाला है
लल्ला गोरखपुरी....
No comments:
Post a Comment