सूरज की हो बूंदा बांदी
या जल बन फट जाए बादल
हो बाणों सी तीखी बातें
या अंधकार बन जाये काजल
इसी समय को ढाल बनाकर
इसी समय से लड़ना है
हमें एक संग चलना है।।
लिए चलें अनुभव को प्रति पल
नियति के निर्णय को निश्छल
हम जीवन के रंगमंच पर
लिख दें एक कथानक पागल
मैं किताब तुम अक्षर अक्षर
खुद को खुद से पढ़ना है
हमें एक संग चलना है।।
तुम धारा हो गंगाजल की
शिव के शीश जटा से छलकी
तपोभूमि का मर्म तुम्ही हो
तुम्ही नाद हो कल कल की
हो माझी मैं नाव तुम्हारा
सप्तसिंधु तक बढ़ना है
हमें एक संग चलना है।।
(लल्ला गोरखपुरी)
#प्रकृति पुत्री#
या जल बन फट जाए बादल
हो बाणों सी तीखी बातें
या अंधकार बन जाये काजल
इसी समय को ढाल बनाकर
इसी समय से लड़ना है
हमें एक संग चलना है।।
लिए चलें अनुभव को प्रति पल
नियति के निर्णय को निश्छल
हम जीवन के रंगमंच पर
लिख दें एक कथानक पागल
मैं किताब तुम अक्षर अक्षर
खुद को खुद से पढ़ना है
हमें एक संग चलना है।।
तुम धारा हो गंगाजल की
शिव के शीश जटा से छलकी
तपोभूमि का मर्म तुम्ही हो
तुम्ही नाद हो कल कल की
हो माझी मैं नाव तुम्हारा
सप्तसिंधु तक बढ़ना है
हमें एक संग चलना है।।
(लल्ला गोरखपुरी)
#प्रकृति पुत्री#
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