Saturday, September 1, 2018

हमें एक संग चलना है

सूरज की हो बूंदा बांदी
या जल बन फट जाए बादल
हो बाणों सी तीखी बातें
या अंधकार बन जाये काजल
इसी समय को ढाल बनाकर
इसी समय से लड़ना है
हमें एक संग चलना है।।

लिए चलें अनुभव को प्रति पल
नियति के निर्णय को निश्छल
हम जीवन के रंगमंच पर
लिख दें एक कथानक पागल
मैं किताब तुम अक्षर अक्षर
खुद को खुद से पढ़ना है
हमें एक संग चलना है।।

तुम धारा हो गंगाजल की
शिव के शीश जटा से छलकी
तपोभूमि का मर्म तुम्ही हो
तुम्ही नाद हो कल कल की
हो माझी मैं नाव तुम्हारा
सप्तसिंधु तक बढ़ना है
हमें एक संग चलना है।।

(लल्ला गोरखपुरी)
#प्रकृति पुत्री#

चैन की कुंडी

चैन की कुंडी पर टंगी बेचैनियां,
अक्सर खनखना जाती हैं
सुनकर ,
बसंती हवा में घुलती धुएँ की सनसनाहट।

और धरती सा हृदय
काँप जाता है
धड़कन के भूकंप से।

फूटने के लिए
तैयार हो जाती है
नई धारा,
आँखों के जल श्रोत से।

और इसी बीच
जब आती है आवाज
ठंड के अकड़न को तोड़ती हुई
गुनगुनाती धूप की तरह
मैं निखर जाता हूँ
अल्हड़ हँसी पुचकार से।

फिर समेट लेती है
तितली जैसे
बैठकर,
सारा सूनापन कुंडी से।

मिलता है नया स्वाद
हृदय को
हलक में,
उतरते थूक की तरावट से।

(लल्ला गोरखपुरी)
#(प्रकृतिपुत्री)