Sunday, July 7, 2019

तुम हो मैं हूँ हम हैं
तजुर्बे की मछली पकड़ते हुए
उम्मीदों की नाव में

तुम हो मैं हूँ हम हैं
धो रहे कपड़े की तरह जिस्म
निचोड़ रहे पसीना

तुम हो मैं हूँ हम हैं
समय के कपाल पर बुन रहे हैं अक्षर
अक्षर होने के लिए

तुम हो मैं हूँ हम हैं
सीमा से ऊपर समय का पंख लगाये
उस पार से इस पार तक

तुम हो मैं हूँ हम हैं
पहरे की पहरेदारी पर
पहर के आगे

तुम हो मैं हूँ हम हैं
विचारों को दृष्टि देने के लिए
दर्शन के शिखर पर

तुम हो मैं हूँ हम हैं
सकल विश्व के सृजनार्थ
अर्धनारीश्वर जैसे

तुम हो मैं हूँ हम हैं
विवेचना के उत्कृष्ट मंच पर
मौन के तरह

तुम हो मैं हूँ हम हैं
सृजन के अथाह गर्भ में
प्रेम की भाँति

तुम हो मैं हूँ हम है
जन्म जन्मांतर की असीम यात्रा में
तुम मैं हम होकर



(लल्ला गोरखपुरी)