1:- "क्या अज़ीब शौक पालता हूँ
वक़्त बेवक़्त नज़्में उछालता हूँ
दिखाने के ख़ातिर अंधेरे का चेहरा
चिरागों में मैं रोशनी डालता हूँ"
2:- प्रतिमाओं को बदल कर देखते हैं
इन हवाओं को बदल कर देखते हैं
लोग भूखे पेट अब यह कह रहे
देवताओं को बदल कर देखते हैं
(लल्ला गोरखपुरी)
वक़्त बेवक़्त नज़्में उछालता हूँ
दिखाने के ख़ातिर अंधेरे का चेहरा
चिरागों में मैं रोशनी डालता हूँ"
2:- प्रतिमाओं को बदल कर देखते हैं
इन हवाओं को बदल कर देखते हैं
लोग भूखे पेट अब यह कह रहे
देवताओं को बदल कर देखते हैं
(लल्ला गोरखपुरी)
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