Monday, July 23, 2018

है पथिक जो तू अगर..

है पथिक जो तू अगर
तो तुझे चलना भी होगा
इस गगन में नित्य उगना
और फिर ढलना भी होगा

मंदाकिनी, आकाशगंगा
सब तेरे चरणों में हैं
मंत्र सी अभिव्यक्ति तेरी
भाव उर अधरों में हैं
अब सहस्त्रों सूर्य को
प्रदीप्ति देने के लिए

वक्ष पर मिथ्या के चढ़कर
ज्वाल बन जलना भी होगा
है पथिक जो तू अगर
तो तुझे चलना भी होगा।।

(लल्ला गोरखपुरी)
#प्रकृतिपुत्री

"मुक्तक"

1:- "क्या अज़ीब शौक पालता हूँ
       वक़्त बेवक़्त नज़्में उछालता हूँ
       दिखाने के ख़ातिर अंधेरे का चेहरा
       चिरागों में मैं रोशनी डालता हूँ"

2:- प्रतिमाओं को बदल कर देखते हैं
      इन हवाओं को बदल कर देखते हैं
      लोग भूखे पेट अब यह कह रहे
      देवताओं को बदल कर देखते हैं

(लल्ला गोरखपुरी)