क्या होता है जब कुछ समझ में नहीं आता? क्या होता है जब अंदर की हलचल मानो हर दीवार को तोड़ देना चाहती हो? क्या होता है जब आंखों का वाटर लेवल धीरे धीरे डाउन होने लगता है और एक समय बाद हो जाती हैं बंजर आंखें, हाहाहा ! मत सोचो! मत सोचो इतना कि चिंता की कुदाल से उपजाऊ हो जाये तुम्हारा दिमाग और उसमें उगने लगें अवसाद के बरगद। नहीं संभाल पाओगे उसकी फैलती हुई जड़ें इतनी आसानी से जितनी आसानी से रोपोगे नाहक बातों के बीज। शब्दों की ऊर्जा पहचानो! ये हैं विचित्र बीज जो बदल लेते हैं खुद की पहचान तुम्हारे शरीर में बदलते हुए सकारात्मक, नकारात्म, चिंता और चिंतन रूपी मौसम के साथ।
ये वही शब्द हैं जो किसी के लिए चुनौती तो किसी के लिए अवसाद का रूप ले कर उगने लगते हैं। जिस प्रकार दाल की खेती अनावश्यक वर्षात में नहीं संभव है उसी प्रकार चुनौतियों तथा संकल्प की खेती, आंखों की अनावश्यक बारिश में असम्भव है। सींचो ! मगर भाव से, अपनी समस्त पौध को, जो रोपे हो अपने दिल में और जिससे पाना चाहते हो अपनी इच्छाओं के फल। तुम्हारे संकल्प अरहर के फली के जैसे हैं जो लेंगे समय, जिनको नही जरूरत है अनावश्यक जल की उनको बस चाहिए समय समय पर भाव के सजीव जल, स्वयं को परिपक्व करके उपभोग के योग्य होने हेतु।
माना कि समय असमय छेंक लेते हैं तमाम झंझावातों के टिड्डि दल और खाने लगते हैं तुम्हारे संकल्पों के फल पर तुम्हे स्वयं पैदा करना होगा सकारात्मकता का मौसम और छिड़कना होगा संकल्प के वृक्ष पर संघर्ष की दवाई, तभी तुम बचा पाओगे उन्हें दिल के जमीन पर।
खड़ी की जाएंगी तमाम मनोवृत्तियों की दीवारें और घेरा जाएगा तुम्हे, फिर जकड़ा जाएगा कोई एक विचारों का कमरा दे कर और छीन लिया जाएगा तुम्हारे विचारों का स्वछंद घोड़ा।
इसीलिए तैयार करो अपने चिंतन का हथौड़ा जो नेस्तनाबूद कर दे इन दीवारों को।
आगे बढ़ो ! रोपते जाओ! बस रोपते जाओ स्वयं के होने का उचित कारण।
फिर मिलेंगे अगली कड़ी में..
फिर होगी #ख़ुद_से_बात
#उनके_लिए😊
(लल्ला गोरखपुरी)
ये वही शब्द हैं जो किसी के लिए चुनौती तो किसी के लिए अवसाद का रूप ले कर उगने लगते हैं। जिस प्रकार दाल की खेती अनावश्यक वर्षात में नहीं संभव है उसी प्रकार चुनौतियों तथा संकल्प की खेती, आंखों की अनावश्यक बारिश में असम्भव है। सींचो ! मगर भाव से, अपनी समस्त पौध को, जो रोपे हो अपने दिल में और जिससे पाना चाहते हो अपनी इच्छाओं के फल। तुम्हारे संकल्प अरहर के फली के जैसे हैं जो लेंगे समय, जिनको नही जरूरत है अनावश्यक जल की उनको बस चाहिए समय समय पर भाव के सजीव जल, स्वयं को परिपक्व करके उपभोग के योग्य होने हेतु।
माना कि समय असमय छेंक लेते हैं तमाम झंझावातों के टिड्डि दल और खाने लगते हैं तुम्हारे संकल्पों के फल पर तुम्हे स्वयं पैदा करना होगा सकारात्मकता का मौसम और छिड़कना होगा संकल्प के वृक्ष पर संघर्ष की दवाई, तभी तुम बचा पाओगे उन्हें दिल के जमीन पर।
खड़ी की जाएंगी तमाम मनोवृत्तियों की दीवारें और घेरा जाएगा तुम्हे, फिर जकड़ा जाएगा कोई एक विचारों का कमरा दे कर और छीन लिया जाएगा तुम्हारे विचारों का स्वछंद घोड़ा।
इसीलिए तैयार करो अपने चिंतन का हथौड़ा जो नेस्तनाबूद कर दे इन दीवारों को।
आगे बढ़ो ! रोपते जाओ! बस रोपते जाओ स्वयं के होने का उचित कारण।
फिर मिलेंगे अगली कड़ी में..
फिर होगी #ख़ुद_से_बात
#उनके_लिए😊
(लल्ला गोरखपुरी)